शनिवार, 8 जनवरी 2011

अनजाने से सच

हुए, हादसे भी अपने 
 उनको अफसाने हैं । 
जीवन के कुछ राज रहे 
 अब तक अनजाने हैं ।

 झूठ बोलकर भी वो सच्चे, 
हम झूठे सच कह कर । 
सदा हाशिये पर ही हैं 
 हम मुख्य कथानक होकर । 
उनके दुख तो दुख हमारे सिर्फ बहाने हैं । 
जीवन के ये राज.... 

सुविधाओं पर उनका ही हक 
फिर भी रोते हैँ । 
उनके बिखराए मलबे को 
 हम ही ढोते हैं । 
फिर भी ,
गीत अराजकता के उनको  गाने हैं । 
जीवन के ये राज....

 छूट कहाँ पढने की 
 अब हैं सिर्फ परीक्षाएं । 
पास-फेल करना 
उनकी मर्जी है, जो चाहें । 
गिने-चुने उत्तर ही रटने और रटाने हैं 
 जीवन के ये राज.... 

क्या गठरी को खोलें 
 उसमें धूल भरी होगी 
 उम्मीदों की तितली 
कबकी दबी मरी होगी । 
फिर से जी उठने के किस्से हुए पुराने हैं । 
जीवन के ये राज रहे.
अब तक अनजाने हैं । 
अपनी इस हालत के हम खुद भी हैं जिम्मेदार । हमदर्दी के याचक बन कर रहे उन्ही के द्वार । जिन्हें हमारी खबरों से अखबार चलाने हैं । जीवन के ये राज रहे अबतक अनजाने हैं ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. गिरिजा जी ,
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति यथार्थ की ।
    आभार।

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  2. Jivan ki sachchai ko bina mukhoute ke ujagar karati hui aapki kavita naw warsh ki sundar prastuti hai !
    Gyanchnad marmagya

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति| आभार।

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  4. ब्लाग पर आने के लिये शुक्रिया ,जबकि कुछ ही सह्रदय पाठक इसे देख रहे हैं । इसके दो ही कारण हो सकते हैं--एक ,मेरी रचनाएं इतनी पठनीय नही । दूसरी , यह कि मैं बहुत सारे ब्लाग नही देख पाती । यहाँ टिप्पणी देख कर ही उस ब्लाग तक जाती हूँ ।
    इसकी खास वजह मेरा इन्टरनेट कनेक्शन काफी धीमा है । एक साइट को खुलने में काफी समय लगता है । ....खैर ,जो भी यहाँ आते हैं वे निस्सन्देह मेरे लिये प्रेरक हैं । धन्यवाद ।

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  5. गिरिजा जी,
    ऐसा नहीं है कि आप अच्छा नहीं लिखतीं। शुरु में ऐसा होता है कि आपको लोगों के बीच पहुंचना पड़ता है बाद में सब याद रखने लगते हैं।आभार,

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    फ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (दूसरा भाग)

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  6. क्या गठरी को खोलें
    उसमें धूल भरी होगी
    उम्मीदों की तितली कबकी
    दबी मरी होगी ।
    bahut achchi laeenen likhi hain.

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  7. क्या गठरी को खोलें
    उसमें धूल भरी होगी
    उम्मीदों की तितली कबकी
    दबी मरी होगी ।

    ओह....मर्म छू गयी आपकी रचना...
    आप बस लिखती रहें...आपकी कलम में जादू है..

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